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________________ ___अनन्तर इसके रानी चेलना आनन्द पूर्वक महाराज श्रेणिकके साथ भोग भोग रही थी । अचानक ही जब उसने यह देखा कि महाराज श्रेणिकका घर परम पवित्र जैन धर्म से राहत है । महाराजके घरमें हिंसाको पुष्ट करने वाले तीन मूढ़तासहित, ज्ञान पूजा आदि आठ अभिमान युक्त, एवं उभयलोकमें दुःख देनेवाले बौद्ध धर्मका अधिक तर प्रचार है । तो उसै अति दुःख हुवा । वह सोचने लगी हाय पुत्र अभयकुमारने वुरा किया । मेरे नगरमें छलसे जैनधर्मका वैभव दिखा मुझ भोली भालीको ठगलिया । क्योंकि जिसघरम श्री जिनधर्मकी भलेप्रकार प्रवृत्ति है । उनके गुणोंका पूर्णतया सत्कार है । वास्तव में वही घर उत्तम घरहै । किंतु जहां जिनधमकी प्रवृत्ति नहीं है वह घर कदापि उत्तम नहीं होसकता । वह मानिंद पक्षियोंके घोंसलेके है । यदि मैं महाराज श्रेणिकके इस अलौकिक वैभवको देख अपने मनको शांत करूं सोभी ठीक नहीं क्योंकि परभवमें मुझे इससे घोरतर दुःखोंकी ही आशाहै। अथवा मैं अपने मनको इसरीतिसे बहलाऊं कि महाराज श्रेणिकके घरमें मुझै अनन्यलभ्य भोग भोगनेमें आरहे हैं, यहभी अनुचित है । क्योंकि ये भोग मानिंद भयंकर भुजंगके मुझे परिणाममें दुःख ही देंगे । भोगोंका फल नरक निर्यच आदि गतियोंकी प्राप्ति है।उनमें मुझे जरूरहीं जाना पड़ेगा । एवं वहां पर घोरतर वेदनाओंका सामना करना पड़ेगा । संसारमें धर्म Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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