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जव कुमारने यह देखा कि सब सेठि मेरे साथ चलनेके लिये तयार है । उन्होंने शीघ्र ही महाराज श्रेणिकसे जानेके लिये आज्ञा मांगी । तथा हीरा पन्ना मोती माणिक आदि जबाहिरात और अन्य अन्य उपयोगी पदार्थ लेकर, एवं समस्त सेठोंके मुखिया सेठि वनकर कुमार अभयने शीघ्र ही सिंधुदेश की और प्रयाण करदिया ।
मायाचारी संसारमें विचित्र पदार्थ है । जिस मनुष्य पर इसकी कृपा होजाती है । उसके लिये संसार में बड़ासे बड़ा भी अहित, करने में सुलभ होजाता है । मायाचारी निर्भय हो चट अनर्थ कर बैठता है । कुमारने ज्योंही राजगृह नगर छोड़ा | माया के वे भी बड़े भारी सेवक होगये । मार्ग में जिस
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नगरको वे बड़ा नगर देखें फौरन वहां पर ठहर जावे । और अन्य सेठा के साथ कुमार भलेप्रकार भगवानकी पूजा करें । एवं त्रिकाल सामायिक और पचं परमेष्ठी स्तोत्र का पाठ भी करें। क्या मजाल थी जो कोई जरा भी भेद जान जाय ! इसप्रकार समस्त पृथ्वी मंडलपर अपने जैनत्वको प्रसिद्धि करते कुमार कुछ दिन बाद विशाला नगरी में जा पहुंचे । और वहांके किसी बागमें ठहरकर खूब जोर शोर से जिनेंद्र भगवान के पूजा माहात्म्यको प्रकट करने लगे ।
कुछ समय वागमें आरामकर कमारने उत्तमोत्तम रत्नोंको चुना । और कुछ जैन सेठोंको लेकर वे शीघ्र ही राजा चेटक
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