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________________ उत्तम उपदेशका फल भी उत्तम ही होता है। वंसतकी बातों में फस कर जो भद्राने वंसतको अपनालिया था । और अपने पतिका अनादर करना प्रारम्भ कर दिया था । भदाकी वह प्रकृति अव न रही। पापसे भयभीत हो भदाने वसंतका अव सर्वथा संबंध तोड़ दिया। उसादनसे वसंत उसकी दृष्टिम कालाभुजंग सरीखा झलकने लगा। अब वह अपने पतिकी तन मनसे सेवा करने लगी। अपने स्वामीके साथ स्नेह पूर्वक वर्ताव करने लगी। भद्राका जैनधर्म पर भी अगाध प्रेम होगया । अपने सुखका महान कारण जैनधर्म ही उसै जान पड़ने लगा । तथा जैनधर्मपर उसकी यहां तक गाढ़ भक्ति होगई कि उसने अपने पतिको भी जैनी बना लिया। एवं वे दोनों दंपती अनंदपूर्वक अयोध्या नगरीमें रहने लगे । ___मद्राने जिसदिनसे शीलवूतको धारण कर लिया उसदिनसे वह वसंतके घर झांकी तक नहीं । इसतिसे जब कई दिन बीत गये वसंतको विना भद्राके बड़ा दुःख हुवा । वह विचारने लगा--भद्रा अव मेरे घर क्यों नहिं आती ? जो वह कहती थी सो ही मैं करता था । मैंने कोई उसका अपराध भी तो नहिं किया ? तथा क्षण एक ऐसा विचार कर उसने भद्राके समीप एक दूती भेजी । दूतीके द्वारा वसंतने बहुत कुछ भद्रा को लोभ दिखाये। अनेकप्रकारके अनुनय भी किये । किंतु भद्राने दूतीकी वात तक भी न सुनी। मोका पाकर वसंत भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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