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________________ ( १३० ) सब ' यह समझ कि हम इन वालकों से कुछ फल लेकर अपनी भूख शांत करेंगे ' शीघ्र ही उस वृक्षकी ओर झुक पड़े। इधर कुमार अभयने जब राजसेवक को अपनी ओर आते देखा तो वे तो अन्य बालकों से यह देखो भाई ! ये राजसेवक अपनी ओर आरहे हैं । तुममें से कहने लगे कोई भी इनके साथ बातचीत न करै । जो कुछ जबाब करूंगा । और उधर कूदे । और वालकों 1 से सवाल करूंगा सो मैं ही इनके साथ राजसेवक जमनीके बृक्षके नीचे चट आ कुछ फलो केलिये उन्होंने प्रार्थना भी की । राजसेवकों की फलोंके लिये प्रार्थना सुन कुमार अभयने सोचा । यदि इनको यही फल देदिये जायगे तो कुछ मजा न आवेगा । इनको छकाकर फल देना ठीक होगा । इस - लिये प्रार्थनाके बदले में उन्होंने यही जवाव दिया । 1 विचित्र वचन राजसेवको ! तुमने फल मांगे सो ठीक है । जितने फलों की तुम्हें इच्छा हो, उतने ही फल दे सकता हूं । किंतु यह कहो । तुम ठंडे फल लेना चाहते हो या गरम ? क्योंकि मेरे पास फल दोनों तरह के हैं । कुमारके ऐसे सुन समस्त राजसेवक एक दूसरेका मुंह उन्होंने विचारा कि क्या केवल गरम और फल होते हैं ? हमैं तो आज तक यह बात सुननेमें नहीं आई कि फल गरम भी होते हैं । जितने फल हमने खाये हैं । ताकने लगे । केवल ठंडे भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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