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कि जाओ और शीघ्रही नंदिग्राम के ब्राह्मणोंसे कहो । महाराजने यह आज्ञादी है कि नंदिग्रामके विप्र एक हाथीका बजन कर शीघ्र ही मेरे पास भेजदें ।
महाराजकी आज्ञा पातें ही सेवक चला । और नंद्रिग्राममें जाकर उसने ब्राह्मणोंसे, जो कुछ महाराजकी आज्ञा थी सब कह सुनाई । तथा यह भी कह सुनाया कि महाराजकी इस आज्ञा का पालन जल्दी हो । नहीं तो आपको जबरन नंदिग्राम खाली करना पड़ेगा ।
सेवक के मुख से महाराजकी आज्ञा सुनते ही नंदिग्रामनिवासी विप्रोंके मुख फखे पड़गये । मारे भयके उनका गात्र कपने लगगया। वे अपने मनमें सोचने लगे कि बावड़ीका विन टलजाने से हमने तो यह सोचा था कि हमारे दुःखोंकी शांति होगई । अव यह बलाय फिरसे कहां से आ टूटी ! | तथा कुछ देर ऐसा विचार वे, बुद्धिशाली कुमार अभयके पास गये ! और उनसे इसरीतिसे विनय पूर्वक कहा ।
माननीय कुमार ! अवके महाराजने बड़ी कठिन अटकाई है । अवके उन्होंने हाथीका बजन मांगा है भला हाथीका वजन कैसे किसरीति से होसकता है ? मालूम होता है महाराज अव हमैं छोड़ेंगे नहीं ।
ब्राह्मणों के ऐसे दोनता पूर्वक वचन सुन कुमारने उत्तरं दिया आप इस जरासो बातकेलिये क्यों इतने घवड़ाते हैं ! । मैं
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