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________________ होगया तो तुमसे नंदिग्राम छीन लिया जायगा। और तुम्हें उस से जुदा करदिया जायगा । महाराजके एसे आश्चर्यकारी वचन सुन सेवकोंने कुछ भी तीन पांच न की । वे बकरेको लेकर शीघ्र ही नंदिग्रामकी ओर चलदिये । तथा नादेग्राममें पहुंचकर बकरा ब्राह्मणोंकी सुपुर्द करादेया । और जो कुछ महाराजका संदेशा था। वह भी साफ साफ कह सुनाया। महाराजका यह विचित्र संदेशा सुन नंदिग्रामके ब्राह्मणों के होश उड़गये । वे अपने मनमें विचार करने लगे। यह वलाय कहांसे आपड़ी । महाराजका तो हमसे कोई अपराध हुवा नहीं है। उन्होंने हमारे लिये ऐसा संदेशा क्योंकर भेजदिया। हे ईश्वर ! यह बात बड़ी कठिन आ अटकी । कमती वढ़ती खवा नेसे यातो यह वकरा लट जायगा । या मोटा हो जायगा । इसका एकसा रहना असंभव है । मालूम होता है अब हमारा अंत आगया है। इधर ब्राह्मग तो ऐसा विचार करने लगे। उधर वेणतटमें सेठि इंद्रदत्तको यह पता लगा कि कुमार श्रोणिक अब मगधदेशके महाराज बन गये हैं। शीघही वे नंदश्री और कुमार अभयको लेकर राजगृहकी ओर चलदिये । और नंदिग्रामके पास आकर ठहरगये। सेठि इंद्रदत्त आदि तो भोजनादि कार्यमें प्रवृत्त हो गये। और नवीन पदार्थोंके देखनेके अतिप्रेमी कुमार अभय, नंदि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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