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________________ momennon ( ९४ ) सूर्यके समान प्रतापी, बड़े बड़े सामंतोंसे सेवित, पुण्यात्मा, जिनके ऊपर क्षीरसमुद्रके समान सफेद चमर दुलरहे हैं, जिनका यश चौतर्फा वंदोजन गान कर रहे हैं, कुमार श्रेणिकने बड़े ठाठ वाटसे नगर में प्रवेश किया। नगरमें कुमारके घुसते ही बाजाके गंभीर शब्द होने लगे । बाजोंकी आवाज सुन जैसे समुद्रसे तंरग बाहिर निकलती है नगरकी स्त्रिया महाराजके देखनेके लिये घरोंसे निकल भगीं । कोई स्त्री अपने स्वामी को चौकेमें ही वैठा छोड़ उसे विनाही भोजन परोसे कुमारके देखने के लिये धर भगी। कोई स्त्री मठा बिलोड़ रही थी कुमारके दर्शनकी लालसासे उसने मठा विलोड़ना छोड़दिया । कोई कोई तो कमार के देखने में इतनी लालायित हो गई कि शृंगार करते समय उसने ललाटका तिलक आखोंमे लगालिया और आखोंका काजल ललाट पर आंज लिया,एवं विना देखे भालेही धरभगी.तथा किसी स्त्रीने शिरके भूषणको गले. पहिनकर गलेके भूषणको शिरमें पहिनकर ही कुमारके देखने के लिये दौड़ना शुरू कर दिया। और कोई स्त्री हारको कमरमें पहिनकर और करधनीको गलेमें डाल कर ही दोड़ी। कोई स्त्री अपने काम लग रही थी जिससमय सखियोंने उससे कमारके देखनेके लिये आग्रह किया तो वह एक दम धरभगी जल्दीमें उसे चोलीके उल्टे सीधेका भी ज्ञान नहीं रहा । वह उल्टी चोली पहिन करही कुमारको देखने लगी। तथा कोई स्त्री तो कुमारके देखनेकोलिये इतनी वेसुध हो गई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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