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इधर कुमार श्रेणिक तो सेठि इंद्रदत्तके घर नन्दश्रीके साथ नानाप्रकारके भोग भोगतेहुवे सुखपूर्वक रहने लगे । उधर महाराजउपश्रेणिक अतिशय मनोहर,अनेकप्रकारकी उत्तमोत्तमशोभा शोभित राजगृह नगरमें आनन्द पूर्वक अपना राज्य कर रहे थे। अचानक ही जब उनको यह पता लगा कि अब मेरी आयु में बहुत ही कम दिन बाकी है—मेरा मरण अब जल्दी होने वाला है । शीघ्रही उन्होंने चक्रवर्तीके समान उत्कृष्ट, बड़े बड़े सामंतोंसे सेवित, विशाल राज्य चिलाती पुत्रको देदिया । तथा राज्यकार्यसे सर्वथा ममतारहित होकर पारमार्थिक कर्मों में वे चित्त लगाने लगे। . कुछ दिनके बाद आयुकर्मके समाप्त होजानेपर महाराज उप श्रेणिकका शरीरांत हो गया । उनके मरजानेसे सारे नगरमें हाहाकार मच गया । पुरवासी लोग शोक सागरमें गोता मारने लगे । रनवासकी रानियांभी महाराजका मरण समाचार सुन करुणा जनक रोदन करने लगीं । जितने भर सौभाग्य चिन्ह हार आदिक थे सब उन्होंने तोड़कर फैक दिये । और महाराजके मरनसे सारा जगत उन्हें अंधकार मय सूझने लगा।
महाराज उपश्रेणिकके बाद रहा ठहा भी अधिकार राजा चलातीको मिल गया। महाराज उपश्रेणिकके समान वहभी मगध देशका महाराज कहा जाने लगा । किं तु राजनीतिसे सर्वथा अनभिज्ञ राजा चलातीने सामंत मंत्री पुरवासी जनोंसे
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