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सुंदरी नंदश्रीके शरीर में अति वाधा देनेवाला यह दुःख कहां से टूट पड़ा इसकी यह दशा क्यों और कैसे हो गई ? तथा क्षण एक ऐसा विचार उन्होंने पास जाकर नंदश्रीसे पूछा, हे प्रिये! जिस कारण से आपका शरीर सर्वथा खिन्न कृश और फीका पड़ गया है वह कोनसा कारण है मुझे कहो ?
कुमार के ऐसे हितकारी एवं मधुर बचन सुनकर और दीहले के पूर्ति सर्वथा कठिन समझकर पहिले तो नंदश्रीने कुछ भी उत्तर न दिया । किं तु जब उसने कुमारका आग्रह विशेष देखा तो वह कहने लगी है कांत ! मै क्या करूं मुझे सात दिन पर्यंत अभयनामक दानका सूचक दोहला हुवा है। इस कार्यकी पूर्ति अति कठिन जान मैं खिन्न हूं । मेरी खिन्नताका दूसरा कोई भी कारण नहीं । प्रियतमा नंदश्रीके ऐसे बचन सुन कुमारने गंभीरतापूर्वक कहा |
प्रिये ! इसबात केलिये तुम जरा भी खेद न करो | मत व्यर्थ खेदकर अपने शरीरको सुखाओ । सुनते ! मैं शीघ्र ही तुम्हारी इस अभिलवाको पूरण करूंगा । चतुरे ! जो तुम इस कार्यको कटिन समझ दुःखित हो रहीं हो । एवं अपने शरीरको विना प्रयोजन सुखा रहीं हो सो सर्वथा व्यर्थ है । तथा मधुर भाषिणी एवं शुभांगी नंदश्रीको ऐसा आश्वासन देकर भलेप्रकार समझा बुझाकर, कुमार श्रेणिक किसी वनकी ओर चलपड़े। और वहां | पर किसी नदी के किनारे बैठ नंदी को इच्छा पूरण करने के
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