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________________ man करता हूं। ___ इसप्रकार विवाह के अनंतर कुमार श्रेणिकने पके हुवे ताल फलके समान उत्तम स्तनोंसे मंडित, मनको भले प्रकार संतुष्ट करनेवाली, कांता नंदश्रीके साथ क्रीड़ा करनी प्रारंभ कर दी । कभी नो कुमार उसके साथ मनोहर उद्यानोंके लता मंडपोंमे रमनेलगे।कभी उन्होने नदियोंकेतट अपने क्रीडास्थल बनाये। तथा कभी कभी वे उत्तम स्तनोंसे विभूषित नंदश्रीके साथ महलकी अटारियोंमे क्रीड़ा करने लगे । जिसप्रकार दरिद्री पुरुष खजाना पाकर अति मुदित हो जाता है और उसे अपने तन बदनका भी होश हवास नहीं रहता । उसीप्रकार कुमार उस नंदश्रीके देहस्पर्शसे आतेशय आनंद रसका अनुभव करने लगे । मनोहरांगी नंदश्री भी सूर्यको किरणस्पर्शस जैसे कमलिनी आनंदित होती है उसीप्रकार कुमारके हाथके कोमलम्पर्शसे अनन्यप्राप्त सुखका आस्वादन करने लगी।कमी तो वे दोनों दंपती चुंबन जन्य सुखका अनुभव करने लगे। और कभी स्वाभाविक रसका आस्वादन करने लगे। तथा कभी कभी दानोंने परस्पर रूपदर्शन एवं रतिसे उत्पन्न आनंदका अनुभव किया।और कभी हाम्योत्पन्न रस चाखा। कभी कभी स्तनस्पर्शसे उत्पन्न एवं कथाकोतूहलसे जानत सुखका भी उन्होंने भोगकिया । इसप्रकार मानसिक कायिक वाच निक अभीष्ट सुखको अनुभव करने वाले, भांति भांतिकी क्रीडाओंमें मग्न, सुखसागरमें गोते मारने वाले, कुमार श्रेणिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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