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सामायिक व्रत के अतिचार
मति-भ्रंश और सामायिकानवस्थित। इन अतिचारों की थोड़े में व्याख्या की जाती है ।
( १ ) मन का सामायिक के भावों से बाहर प्रवृत्ति करना, मन को सांसारिक प्रपंचों में दौड़ाना और अनेक प्रकार के सांसारिक कार्य विषयक संकल्प-विकल्प करना, मनः दुष्प्रणिधान नाम का अतिचार है ।
( २ ) सामायिक के समय विवेक रहित कटु, निष्ठुर व असभ्य बोलना, निरर्थक या सावद्य वचन कहना, वचनदुष्प्रणिधान है ।
( ३ ) सामायिक में शारीरिक चपलता दिखलाना, शरीर से कुचेष्टा करना, बिना कारण शरीर को फैलाना, सिकोड़ना या असावधानी से चलना, काय दुष्प्रणिधान है ।
( ४ ) मैंने सामायिक की है, इस बात को भूल जाना या कितनी सामायिक ग्रहण की है यह विस्मृत कर देना, अथवा सामायिक करना ही भूल जाना, सामायिक मति-भ्रंश है ।
( ५ ) सामायिक से ऊबना, सामायिक का समय पूरा हुआ या नहीं, इस बात का बार-बार विचार छाना या सामायिक का समय पूर्ण होने से पहिले हो सामायिक समाप्त कर देना, सामायिका नवस्थित है। यदि सामायिक का पहिले, जान बूझ कर सामायिक समाप्त की
समय पूर्ण होने से जाती है, तब तो
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