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सामायिक कैसी हो ___ वह दूसरा श्रावक कण्ठा लेकर कलकत्ता गया। वहाँ उसने वह कण्ठा बन्धक (गिरवी) रख दिया, और प्राप्त रुपयों से व्यापार किया। योगायोग से, उस श्रावक को व्यापार से अच्छा लाभ हुना। श्रावक ने सोचा, कि अब मेरा काम चल गया है, इसलिए अब कण्ठा जिसका है उसे वापस कर देना चाहिए। इस प्रकार सोचकर वह कण्ठा छुड़ाकर दिल्ली आया। उसने अनुनय, विनय और क्षमा प्रार्थना करके, वह कण्ठा जोहरी श्रावक को दिया तथा उससे कण्ठा गिरवी रखने एवं व्यापार करने का हाल कहा। उस समय घरवालों एवं अन्य लोगों को कण्ठा-सम्बन्धी सब बात मालूम हुई।
मतलब यह कि कोई कैसी भी क्षति करे, सामायिक में बैठे हुए व्यक्ति को स्थिर-चित्त होकर रहना चाहिए, समभाव रखना चाहिए, उस हानि करनेवाले पर क्रोध न करना चाहिए, न बदला लेने की भावना ही होनी चाहिए ।
श्री उपासक दशान सूत्र के छठे अध्ययन में, कुण्डकोलिक श्रावक का वर्णन है। उसमें कहा गया है, कि कुण्डकोलिक श्रावक अपनी अशोक वाटिका में अपना उत्तरीय वनऔर अपनी नामाङ्कित मुद्रिका उतार कर धर्म चिन्तवन कर रहा था। उस समय वहाँ एक देव पाया। कुण्डकोलिक को विचलित करने के लिए, वह देव, कुण्डकोलिक का अलग रखा हुआ मुद्रिका सहित वन उठाकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com