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सामायिक कैसी हो सामायिक करना चाहता है, उसको अपना खान-पान और रहन-सहन । भी शुद्ध रखना चाहिए और जब भी सामायिक में चित्त न लगे, अपने खान-पान और रहन-सहन की आलोचना करके अशुद्धि मिटानी चाहिए। जिस व्यक्ति का जैसा आहार-विहार है, उसका चित्त भी वैसा ही रहेगा। यदि आहार-विहार शुद्ध है, वो चित्त स्थिर रहेगा, लेकिन यदि शुद्ध नहीं है, तो उस दशा में सामायिक में चित्त स्थिर कैसे रह सकता है !
सरह सकता है ! सामायिक में बैठे हुए व्यक्ति को शान्त और गम्भीर भी रहना चाहिए। साथ ही सब के प्रति समभाव रखना चाहिए, चाहे किसी के द्वारा अपनी कैसी भी हानि क्यों न हुई हो या क्यों न हो रही हो। सामायिक में बैठा हुआ श्रावक इस पंचम आरे में भी किस प्रकार समभाव रखता है तथा भौतिक पदार्थ को हानि से अपना चित्त अस्थिर नहीं होने देता है, यह बताने के लिए एक घटना का वर्णन किया जाता है, जो सुनी हुई है।
दिल्ली में एक जोहरी श्रावक सामायिक करने के लिए बैठा। सामायिक में बैठते समय उसने अपने गले में पहना हुमा मूल्यवान कण्ठा उतार कर अपने कपड़ों के साथ रख दिया। वहीं पर एक दूसरा श्रावक भी उपस्थित था। उस दूसरे श्रावक ने जौहरी श्रावक को कण्ठा निकाल कर रखते देखा था। जब वह जोहरी
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