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गावश्यक दो शब्द
श्रीमज्जैनाचार्य पूज्य श्री १००८ श्री जवाहिरलालजी महाराज साहिब के फरमाये हुए व्याख्यानों के आधार पर "श्रावक के चार शिक्षा व्रत” नामक यह पुस्तक "व्याख्यान सार-संग्रह पुस्तक माला" का अठारहवाँ पुष्प आपके सन्मुख उपस्थित करते हुए हमें अत्यानन्द होता है। इस से पूर्व के प्रकाशित व्याख्यान सार-संग्रह पुस्तक माला के सतरह पुष्पों को जैन और जैनेतर जनता ने जिस भाव से अपनाये हैं उसी के परिणाम स्वरूप यह अठारहवाँ पुष्प भी हम आपके कर-कमलों में पहुँचाने के लिये प्रोत्साहित हुए हैं।
मण्डल से प्रकाशित साहित्य के मुख्यतया दो विभाग हो सकते हैं। एक कथा विभाग और दूसरा तत्त्व विभाग। प्रस्तुत पुस्तक तत्त्व विभाग की है। कथा विभाग में जो रोचकता
आ सकती है वह तत्त्व विभाग के साहित्य में नहीं आ सकती, फिर भी यह विषय इतना उपयोगी और भाव-प्रद है कि प्रत्येक जैन को इसे समझने की आवश्यकता है क्योंकि सामायिकादि क्रियाएँ जैन श्रावक के नित्य कर्म हैं और वे आत्मोत्थान के मार्ग हैं। इस विषयक सत् साहित्य के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com