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सामायिक का उद्दश्य
अनुभव बढ़ाना अनुप्रेक्षा है। बाह्य ज्ञान की अपेक्षा अनुभूत ज्ञान महा निर्जरा और समभाव को समीप करने वाला है। कहा है--
मन वच तन थिरते हुए, जो सुख अनुभव माय । इन्द्र नरेन्द्र फणेन्द्र के, ता समान सुख नाय ॥
(शांति प्रकाश) ५-धर्म कथा, उक्त चारों साधनों द्वारा आत्मा जो अनुभव प्राप्त करता है, उस अनुभव का दूसरे को लाभ देना, लोगों को हिताहित का बोध करा कर धर्म के सम्मुख करना और पतित होने से बचाना 'धर्म कथा' है।
उक्त पाँचों साधन इन्द्रीय और मन का निग्रह करके समाधि भाव में प्रवर्त्ताने के लिए प्रशस्त हैं। सामायिक ग्रहण किये हुए व्यक्ति को इन्हीं साधनों का सहारा लेना चाहिए, जिससे सामायिक ग्रहण करने का उद्देश्य, आत्मा को पूर्ण समाधि भाव में स्थित करना सफल हो।
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