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सामायिक व्रत
पूजनीय, ज्ञानावरणीय आदि घातक कर्म के नाशक, अनन्त केवलज्ञान रूप लक्ष्मो से युक्त, अरिहन्त भगवान के स्वरूप का ध्यान करके यह मानना कि मेरा भी आत्मा ऐसा ही है, अन्तर केवल यही है कि अरिहन्त भगवान ने भात्मा रूपी सूर्य का प्रकाश रोकने वाले कर्म रूपी आवरण को नष्ट कर दिया है, लेकिन मेरा आत्मा कर्म-मल से आच्छादित है, उस कर्म-मल को हटा देने पर इस परमात्म स्वरूप में और मेरे में कोई अन्तर नहीं है । इस प्रकार की भावना करते हुए, जीवनमुक्त-अजन्मा और नष्ट पाप परमात्मा से तन्मयता साधना, रूपस्थ ध्यान है।
इति विगत विकल्पं क्षीण रागादि दोषं विदित सकल वेद्यं त्यक्त विश्व प्रपंचः। शिवमजमनवद्यं विश्व लौकीक नाथं परम पुरुष मुंचै र्भावशुद्धया भजस्वः॥
(मालिनी वृत्तम् ) अर्थात्-जिनके समस्त विकल्प मिट गये हैं, रागादि दोष क्षीण हो चुके हैं, जो समस्त पदार्थों को जानते हैं, जिनने जन्म-मरण का प्रवाह नष्ट कर दिया है, जो पाप-रहित हो गये हैं, जो समस्त लोक के नाथ होकर लोकाग्र पर स्थित हैं, उन रूपातीत सिद्ध भगवान के स्वरूप का चिन्तवन करके अपने को उस रूप में लय करदे, उनके स्वरूप से आत्मा की तुलना करता हुआ सत्ता की अपेक्षा से आत्मा को भी उनके समान जानकर आत्मा का वैसा ही रूप प्रकट करने के लिए उनके रूप के ध्यान में तल्लीन हो जाना, रूपातीत ध्यान है।
ऊपर बताये गये ध्यानों में रमण करने का नाम ही सामायिक है। ऐसे ध्यान के द्वारा आत्मा समभाव को प्राप्त होता है।
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