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निवेदन
अपने आत्मोत्थान के लिये प्रत्येक भव्यात्मा को ज्ञान, दर्शन और चारित्र को आराधना करना अनिवार्य है । वह रत्नत्रयी की आराधना इस मनुष्य भव में ही कर सकता है क्योंकि पूर्ण रूपेण आराधना संसार त्याग कर दीक्षा धारण करने पर ही हो सकती है । किन्तु जिनकी शक्ति संसार त्यागने की नहीं है, वे गृहस्थाश्रम में रह कर भी श्रावक के द्वादश व्रत धारण कर अपना आत्म-कल्याण कर सकते हैं । फिर भी जिसकी आराधना करनी है प्रथम उसका विशेष ज्ञान होना परमावश्यक है । - श्रीमज्जैनाचार्य्यं पूज्य श्री जवाहिरलालजी महाराज साहिब के व्याख्यानों पर से सम्पादित और इसी मण्डल से प्रकाशित अहिंसादि श्रावक के बारह व्रतों की पृथक् २ सात पुस्तकों का अध्ययन कर लेने से श्रावक के द्वादश व्रतों की आराधना सुचारु रूप से सुगमता पूर्वक और विवेक सहित हो सकती है। वाचकों को सुविधा और खर्च का बचाव हो सके इसलिये मण्डल के ऑफिस के अतिरिक्त निम्न लिखित स्थानों से भी ये पुस्तकें मिलने की व्यवस्था कर दी गई है :
१ उदयपुर ( मेवाड़ !, २ ब्यावर, ३ जोधपुर,
५ सरदार शहर ( थली ) और ६ देहली ।
४ बीकानेर,
कीमत सातों पुस्तकों की रु० १ ॥ = ) हैं किन्तु पूरा सेट लेने से रु० १ ) में दिया जावेगा । पोष्टेज अलग होगा ।
निवेदक
मत्री - श्री जैन हितेच्छु श्रावक मण्डल, रतलाम
दि डायमण्ड जुबिली (जैन) प्रेस, अजमेर में मुद्रित.
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