________________
श्रावक के चार शिक्षा व्रत
१४८
कि यह व्रत एक तो श्रद्धा रूप होता है, दूसरा प्ररूपणा रूप होता है और तीसरा स्पर्शना रूप होता है। इन तीनों भेदों में से स्पर्शना रूप व्रत तो संयोग मिलने पर ही होता है, लेकिन श्रद्धा
और प्ररूपणा रूप व्रत तो सदा हो बना रह सकता है। मायाचार या कपट से श्रद्धा और प्ररूपणा रूप व्रत भी दूषित हो जाता है । इसलिए अतिचार में बताये गये कामों से श्रावक को सावधानी पूर्वक दूर रहना चाहिए ।
(CN
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com