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अतिथि-संविभाग व्रत रखता है, जो साधु मुनिराज के काम में नहीं आ सकती, तो वह श्रावक मुनिराजों को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वन,पात्र, पाट आदि चीजों से प्रतिलाभित कैसे कर सकता है! श्रावक का दूसरा नाम श्रमणोपासक यानि साधु का उपासक (सेवा करने वाला) है। मुनि महात्मा श्रावकों से शरीर सम्बन्धी सेवा तो लेते नहीं। इसलिए श्रावक, मुनिराजों की सेवा उन चीजों से मुनिराजों को प्रतिलाभित करने के रूप में ही कर सकता है कि जो चीजें मुनि महात्मा के संयमी जीवन में सहायक हो सकती हैं और वे भी मुनि महात्मा के लिए बनाई हुई न हों, किन्तु अपने या अपने कुटुम्बियों के उपयोग के लिए बनाई अथवा खरीदी हुई हों। ऐसी दशा में जब श्रावक मुनि महात्मा के काम में आने वाली चीजों का उपयोग ही न करता होगा, तब वह मुनि महात्माओं को ऐसी चीजों से प्रतिलाभित कैसे कर सकेगा! साधु मुनिराजों को प्रतिलाभित करने का लाभ वही व्यक्ति ले सकता है, जिसके पास ऐसी चीजें हों।
आज गृहस्थों को मनोवृत्ति कुछ ऐसी संकुचित हो रही है कि वे जितने कपड़े सिलवाने होते हैं, उतने ही के लिए बाजार से कपड़ा खरीद लाते हैं। उनके घर में बिना सिला हुमा कपड़ा मिलना कठिन होता है। इसके लिए आर्थिक दुरावस्था का बहाना भी असंगत है। क्योंकि वार्षिक दुरावस्था का बहाना तो तब ठीक
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