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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
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होने के कारण जब प्रतिलेखन नहीं हो सकता, तब रात्रि आदि में रजोहरण या पूंजनी द्वारा परिमार्जन किया जाता है और इस प्रकार यना की जाती है।
३ अप्रतिलेखित दुष्पतिलेखित उच्चार प्रस्रवन भूमिशरीर-चिन्ता से निवृत्त होने के लिए त्यागे जाने वाले पदार्थों को त्यागने के स्थान का प्रतिलेखन ही न करना या भली प्रकार प्रतिलेखन न करना, अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित उच्चार प्रस्रवन भूमि नाम का अतिचार है।
४ अप्रमार्जित दुष्पमार्जित उच्चार प्रस्रवन भूमितीसरे अतिचार में जिस स्थान का वर्णन किया गया है, उस स्थान का परिमार्जन न करना या भली प्रकार परिमार्जन न करना, अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित उच्चार प्रस्रवन भूमि नाम का अतिचार है।
५ पौषधोपवास सम अननुपालन-पोषधोपवास व्रत का सम्यक् प्रकार से उपयोग सहित पालन न करना या सम्यक् रीति से पुरा न करना, पौषधोपवास सम अननुपालन नाम का अतिचार है।
इन अतिचारों से बचे रहने पर व्रत निर्दोष रहता है और मात्मा का उत्थान होता है।
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