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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
११२ जाता। इसलिए पौषध व्रत-धारी श्रावक को रात के समय अधिक से अधिक धर्म-जागरण करना चाहिए। पंचम गुण स्थान पर स्थित लोगों को शुक्ल ध्यान तो होता ही नहीं है। आर्त, रौद्र
और धर्म ये तीन ही ध्यान हो सकते हैं। इनमें से पोषध व्रत-धारी के लिए आत-ध्यान और रौद्र-ध्यान तो सर्वथा त्याज्य ही है। उसके लिए तो धर्म-ध्यान हो शेष रहता है, जो प्रशस्त भी है। इसलिए पौषध व्रत-धारी श्रावक को पोषध व्रत का समय धर्मध्यान में ही लगाना चाहिए।
शास्त्रकारों ने धर्म-ध्यान के आज्ञा-विचय, अपाय-विचय, विपाक-विचय और संस्थान-विचय ये चार भेद बताये हैं। इन चारों भेदों का स्वरूप इस प्रकार है
१ आज्ञा-विचय-जैन सिद्धान्त में वस्तु-स्वरूप का जो वर्णन है, सर्वज्ञ वीतराग भगवान् की आज्ञा को प्रधानता देकर उस वस्तु-स्वरूप का चिन्तन करना, आज्ञा-विचय नाम का धर्मध्यान है। यह माझा दो प्रकार की है। एक तो आगम-माझा
और दूसरी हेतुवाद-बाशा। आगम-बाशा वह है, जो प्राप्त वचन द्वारा प्रतिपादित होने पर हो प्रमाण मानी जावे और हेतुवाद आक्षा वह है, जो अन्य प्रमाणों से भी प्रतिपादित हो।
२ अपाय-विचय-आत्मा का अहित करने वाले कर्मों का नारा किस तरह हो, इस विषयक विचार करते हुए यह सोचना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com