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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
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होता। किन्तु ग्यारहवें व्रत में शुमार किये जाने योग्य पोषध कर सकता है * ऐसा व्यवहार है ।
सर्व सावध योग के त्यागपूर्वक पौषधोपवास व्रत करने वाले का क्या कर्तव्य होता है, यह बताने के लिए सुखविपाक सूत्र में सुबाहुकुमार के वर्णन में कहा गया है कि
तत्तणं से सुबाहुकुमारे अन्नयाकयाई चाउदस्सटू मुदिद पुण्णमासिणीषु जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छई उवागछईत्ता पोसहसाला पमज्जई पमज्जईत्ता उचार पासवण
___ + वर्तमान समय में ग्यारहवें पौषध व्रत के लिए पूरे आठ पहर के स्थान पर कम समय का करने की प्रथा भी है। बल्कि किसी किसी देश में पौषधवत की मर्यादा कम से कम पाँच पहर की और किसी किसी देश में चार पहर की भी है। यानि यह प्रथा है कि सूर्यास्त से पहले पौषध स्वीकार कर लिया जाता है और रात भर पौषध में रहकर सूर्योदय होने पर पौषध पाल लिया जाता है। इस तरह धारणा और परम्परा के आधार पर अनेक प्रथाएँ हैं, लेकिन कम समय के लिए पौषध करने वाले को भी एक दिन और एक रात के लिए यानि आठ पहर के लिए चारों प्रकार का आहार, अब्रह्मचर्य, शरीर-अलंकार और आजीविका सम्बन्धी व्यापार का त्याग तो करना ही चाहिए। परन्तु वर्तमान समय में, आठ पहर से कम समय के लिए पौषध करने वालों द्वारा इस नियम का पूरा पालन होता नहीं देखा जाता। सूत्रों में तो प्रति पूर्ण पोषध करने वाले के लिए आहारादि के साथ ही व्यापारादि का त्याग भी आवश्यक बताया गया है। इसलिए जिस प्रकार पानी पीकर उपवास करने वाला या शरीर पर तैलाहि मर्दन करने, कराने वाला व्यक्ति ग्यारहवाँ पौषध व्रत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com