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श्रावक के चार शिक्षा प्रत
१०४ पोसहोववासे चउविहे पनत्ते तं जहा आहार पोसहे, शरीर पोसहे, बम्भचेर पोसहे, अव्यवहार पोसहे।
अर्थात्-पौषधोपवास चार प्रकार का होता है। आहार पौषध, शरीर पौषध, ब्रह्मचर्य पौषध और अव्यापार पौषध ।
इन चारों पोषध की थोड़े में अलग अलग व्याख्या की जाती है।
१ आहार पौषध-आहार का त्याग करके धर्म को पोषण देना, माहार पौषध है।
प्रति-दिन आहार करने के कारण शरीर में अनेक प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे धर्म कार्य में बाधा होती है। साथ ही माहार प्राप्त करने में, पकाने में और खाने, पचाने आदि में भी समय जाता है। उस समय को बचा कर धर्म का पोषण करने में लगाने और आहार करते रहने के कारण उत्पन्न विकारों को शमन करने के लिए उपवास पूर्वक धर्मानुष्ठान में लगाने का नाम आहार त्याग पौषध है। वह अाहार त्याग पौषध दो प्रकार का है, देश से और सर्व से । क्षुधा-वेदनी का परिषह नहीं जीत सके इसलिये क्षुधा-कुकरी को टुकड़ा फेंकने रूप शरीर को भाडा देने के लिये आयंबिल करना, निवी करना अथवा एकासना पियासना करके धर्म को पोषण देना देश से बाहार पौषध है,
और सम्पूर्ण दिन, रात्रि चौविहार उपवास करना सर्व से आहार त्याग पौषध है।
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