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देशावकाशिक व्रत के अतिचार
जिससे दूसरा व्यक्ति आशय समझ जावे, यानि शारीरिक चेष्टा द्वारा संकेत करना, रूपानुपात नाम का अतिचार है ।
५ बाह्य पुद्गल प्रक्षेप-मर्यादित भूमि के बाहर का कार्य उपस्थित होने पर ढेला, कंकर आदि चीजें मर्यादित भूमि के बाहर फेंक कर दूसरे को संकेत करना, बाह्य पुद्गल प्रक्षेप नाम का अतिचार है। ___ऊपर बताये गये अतिचारों में से प्रारम्भ के दो अतिचार, अतिचार की कोटि में तभी तक हैं, जब तक अतिचार में बताये गये कार्य बिना उपयोग से यानि भूल से किये जावें। इस पर से यह प्रश्न होता है कि जब प्रारम्भ के दोनों अतिचार में बताये गये कार्य को करनेवाला व्यक्ति व्रत की अपेक्षा रखता है और इसीलिए वह स्वयं न जाकर दूसरे को भेज रहा है, तब उसका कार्य भूल से हुआ कैसे कहा जा सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यह दशा व्रत दो करण तीन योग से होता है । इसलिए व्रत स्वीकार करने वाला व्यक्ति मर्यादित भूमि के बाहर न तो स्वयं ही जा सकता है, न किसी को भेज हो सकता है । ऐसा होते हुए भी, अपने लिए मर्यादित भूमि से बाहर न जाने का ध्यान तो रखना, लेकिन दूसरे को न भेजने का ध्यान न रखना, और भेज देना, अतिचार है। यदि दूसरे को न भेजने के नियम का ध्यान होने पर भी इस नियम की उपेक्षा करके दूसरे को
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