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लेखक ने जैन सङ्घ की वर्तमान दशा पर भी बड़ी स्पष्ट आलोचना की है। कहां इस का वह जाज्वल्यमान भूत और कहां आजकल की परिस्थिति । इस पर केवल आलोचना ही नहीं की गई बल्कि इसे सुधारने के उपाय भी बतलाए गए हैं।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक ज़न और जेनेतर दोनों के लिये बड़ी ही उपयोगी सिद्ध होगी। जैन लोग तो इस को पढ़कर अपने धर्म की भूत और वर्तमान दशा को जान सकते हैं। जेनेतर लोग इस के पढ़ने से जैन धर्भ विषयक असत्य धारणाओं को छोड़ कर उस का वास्तविक स्वरूप समझ सकेंगे।
पजावी विमाग, पटियाला, ३०-१-५१
बनारसीदास जैन एम. ए.,
पी. एच. डी. (निवृत्त प्रोफेसर पंजाब यूनिवर्सिटो)
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