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________________ ( ६१ ) बहुत समझाया बुझाया परन्तु वह कामान्ध हो रहा था अतः बलात्कार से अपनी वासना पूर्ण करने के लिये तैयार हो गया । धारिणी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिये तुरन्त अपनी जीभ खींच कर बाहिर निकाल दी और प्राण दे दिये । इस प्रकार अपने शील की रक्षा के लिये धारिणी ने अपने प्राणों की बलि दे दी और योद्धा के जीवन को भी इस आत्मोत्सर्ग के द्वारा धार्मिक जीवन में बदल डाला । जैन धर्म के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ जी बाल्य काल से ही विरक्त थे । विवाह की इच्छा न होने पर भी उन की सगाई मथुरा के राजा उग्रसेन की गुणवती पुत्री राजीमती से कर दी गई । वे बड़ों के अनुरोध को टाल न सके । जव वरात उग्रसेन के यहां पहुंची तो नेमिनाथ ने बरातियों के भोजन के लिये लाए गए पशुओं का वाड़ा भरा देखा । वे अपने विवाह के निमित्त निरपराध पशुओं का वध न देख सकते थे ! वे वहां से भाग गए और गिरनार पर्वत पर जाकर दीक्षा लेली | जब राजीमती को इस बात का पता चला तो उसने भी पति का अनुसरण किया और दीक्षा लेली । दूसरे किसी करने के माता पिता के प्रस्ताव को उस ने ठुकरा दिया । दीक्षित अवस्था में एकबार जब वह गिरनार पर्वत पर जा रही थी तो वर्षा के कारण उस के बस्त्र भीग गए और उन्हें सुखाने के लिये वह एक समीप की गुफा में चली गई उसी गुफा में एक रथनेमि नामका साधु बैठा था । वह राजीमती के रूप लावण्य को देख कर कामासक्त हो गया और रति की प्रार्थना करने लगा । राजीमती आदर्श जैन महासतियों में से थी । वह अपने शीलधर्म को कब भूलने वाली थी । उसने कहा: कुमार के साथ विवाह जइ सि रुत्रेण वेसमणो, ललिएण नलकुब्बरो । तहा वितेन इच्छामि जइ सि सक्खं पुरंदरे !! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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