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पाठकों के ख्याल में यहबात आ जाय कि चरित्र-निर्माण के लिए कैसे वातावरण की आवश्यकता है ?
प्राचीन आश्रम (गुरुकुल): -
प्राचीन समय के आश्रम, जिनको 'गुरुकुल' कहा जा सकता है, वे सादी और पवित्र वातावरण के प्रतीक थे । न बड़े २ मकान थे, न फर्नीचर का ठाट था | सुन्दर वृक्ष-वाटिकाओं में बने हुए मिट्टी के सादे मकानों में, ये आश्रम चलते थे । गुरु-शिष्यों का सम्बन्ध मानो कौटुम्बिक सम्बन्ध था । इन आश्रमों को चलाने वाले गुरू भोग-विलासों में लिप्त, शृङ्गार के पुतले, व्यसनों से भरे हुए सांसारिक वासनाओं में रहने वाले गृहस्थ नहीं थे । वे त्यागी, संयमी, जितेन्द्रिय वानप्रस्थ अथ विरक्त ऋषि थे । उत्तम संस्कार वाले, शुद्ध गृहस्थाश्रम को पालन करने वाले माता पिता, छः सात वर्षों तक अपने बच्चों में सुन्दर संस्कार डाल करके विद्यायन के लिए ऐसे पवित्र वातावरण वाले आश्रमों में- गुरुकुलों में रखते थे । कहा जाता है कि अधिक से अधिक ४४ ( चवालीस ) और कम से कम २५ (पच्चीस) वर्ष तक इन आश्रमों में वे बालक रहते थे । यह वैज्ञानिक अनुभव सिद्ध सत्य है कि वाता
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