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( २७ ) योग्य जैसी पात्रता होनी चाहिये, वैसी नहीं है। फिर भी, हमें चरित्र-निर्माण तो करना ही है। प्रयत्न करेंगे तो आज, नहीं तो, वर्षों, युगों के पश्चात् तो हम अवश्य ही साफल्य प्राप्त करेंगे । ऐसी आशा रखते हुए हमें प्रयत्न करना है। . चरित्र-निर्माण का सीधा सम्बन्ध शिक्षकों के साथ में है । माना कि आधुनिक छात्रों में प्रायः जैसी चाहिए वैसी पात्रता न हो, माना कि शिक्षकों के साथ में केवल चार या पांच घन्टे तक ही विद्यार्थियों का सम्बन्ध रहता है, और माना कि आज के शिक्षक इन्ही विद्यार्थियों में से शिक्षक बने हैं। ('शिक्षक' से मेरा तात्पर्य केवल पढ़ाने वालों से ही नहीं है, शिक्षक, निरीक्षक, और परीक्षक सभी से है जिनका सम्बन्ध एक या दूसरी रीति से छात्रों के साथ में है ।) ऐसा होते हुए भी शिक्षकों की जवाबदारी बहुत जबरदस्त है ऐसा मैं मानता हूँ। 'शिक्षक' शिक्षक ही नहीं, बल्कि 'गुरू' हैं, वे शिल्पकार हैं। पत्थर खराब होते हुए भी, अगर शिल्पकार चतुर है, तो उसमें से एक सुन्दर मूर्ति का निर्माण कर सकता है, बल्कि अधिक कुशल शिल्पकार बालू (रेती) की भी तो मूर्ति बनाता है । 'शिक्षक' एक फोटोग्राफर है, लेन्स हल्का होते हुए भी वह अपनी कुशलता से सुन्दर चित्र नहीं
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