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________________ ( २३ ) (२) प्रत्येक भारतीय धर्म, धर्मप्रचारक और धर्म के मौलिक सिद्धांतों का परिचय कराया जाय । इस परिचय में किसी प्रकार की अनुचितता, आक्षेप वा असभ्यता न आने पावे, इसके लिए हो सके तो उन-उन धर्मों के तटस्थ, पर धर्मसहिष्णु विद्वानों से ऐसे ग्रन्थ लिखाये जायँ । ऐसा न हो सके तो, वे पाठ ऐसे उदार तथा विद्वान उस धर्म के अनुयायियों को दिखलाकर उनकी सम्मति से सम्मिलित किये जायँ । (३) ऐतिहासिक बातें, जो ऐसी पाठ्य-पुस्तकों में आयें, वे जिस समाज और धर्म से सम्बन्ध रखने वाली हों, उस समाज और उस धर्म के उदार इतिहासज्ञों को दिखाकर सम्मिलित करनी चाहिएँ, अभी-अभी बहुत से ऐसे नाटक तथा उपन्यास हिन्दी, गुजराती तथा मराठी में प्रकाशित हुए हैं, जिनमें विषयों का रस उत्पन्न करने के इरादे से, द्वषवृत्ति से अथवा वास्तविक इतिहास की अनभिज्ञता से ऐसे अनुचित उल्लेख किये गए हैं, जिनके कारण समाजों में और लेखकों में बहुत बड़ा आन्दोलन हो रहा है । व्यर्थ इस प्रकार की असत्यता और परस्पर मनोदुःव, परस्पर आंग हों, ऐसा निमित्त न होने देना चाहिए । इसीलिए पाठ्य पुस्तकों को निर्धारित करते समय ही इसका ध्यान रखना चाहिए । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035259
Book TitleShikshan Aur Charitra Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Granthmala
Publication Year1951
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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