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________________ शेष विद्या प्रकाश :: :: ६७ 'मांगना मरना समान है' वेपथुर्मलिनं वस्त्रं दीना वाग् गद्गद् स्वरः । मरणे यानि चिह्नानि तानि चिह्नानि याचके ॥६८।। अर्थ-मरण समय में जितने चिहन होते हैं उतने ही याचक ( भीख मांगने वाले ) के होते हैं जैसे१. मृत्यु के समय शरीर कम्पता है वैसे भीख मांगते समय में भी दिल और दिमाग में कम्पन होता है । २. मृत्यु के समय कपडे गंदे होते है उसी प्रकार भीख के समय में भी। ३. मरण समय में वाणी कम्पती है उसी प्रकार मांगते समय में भी कंपती है अत: कहावत है कि 'मांगन से मरना भला' ।।६।। बालपने में माता प्यारी, भर जुवानी में नारी । बुढ़ापन में लाठी प्यारी, बाबा की गति न्यारी ।। ढोला थासु ढोर भला, करे वनों में वास । जल पिये चारो चरे, करे घसें री प्रास ।। लिखा परदेश किस्मत में, वतन की याद क्या। ___ जहां कोई नहीं अपना, वहां फरियाद करना क्या १॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035257
Book TitleShesh Vidya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherMarudhar Balika Vidyapith
Publication Year1970
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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