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रामायण के व्याख्यान मैंने सुने । मेरा मैं साक्षी हूँ कि 'मेरे लिए वह अनिर्वचनीय अवसर था । मुझे खूब आनन्द आया। मेरे संग्रह किये हुए संस्कृत श्लोकों का तथा हिन्दी गुजराती पद्यों का संस्कार किया जाय, ऐसा जब मैंने कहा तो बड़े हर्ष के साथ मुनिजी ने स्वीकार किया और भावानुवाद की शुरुआत हुई और काम पूरा हुआ। जो आज जनता के करकमलों में है। पाठक वर्ग ही इसका निर्णय करेगा- कि 'अनुवाद कैसा हुआ है ? मैं तो यह कहूँगा कि 'धूतं च मांसं च सुरा च वेश्या' इत्यादिक श्लोकों में मुनिजी की कलम कुछ तूफान करती हुई चली है । परन्तु जैनागम से बहार नहीं गई है। यह एक संतोष का विषय है।
मैं मुनिराज श्री का ऋणी हूँ कि मेरी इच्छाओं को बड़े उदार दिल से पूरी की है।'
परम पूज्य, श्राराध्यपाद, शासन दीपक स्व० श्री १००८ श्री विद्याविजयजी महाराज की बेहद कृपा दृष्टि का ही कारण हैं कि मुझे विद्या क्षेत्रों से काफी प्रेम रहा है। व्यापार क्षेत्र से जानबूझ कर मैंने सन्यास लिया और अब मरुधर बालिका विद्यापीठ, विद्यावाड़ी में बाल ब्रह्मचारिणी, कुमारिकाओं की सेवा करने का अपूर्व चान्स मुझे मिला है । मेरा चले और जैन समाज के श्रीमंत बुद्धि जीवी यदि मेरी सुने तो मैं उनको अत्यन्त विश्वास पूर्वक सलाह दंगा कि___ अपनी कन्याओं को पढ़ाना यह एक अपूर्व धर्म मार्ग तो है ही, परन्तु बहुत सी शताब्दियों से पीछे रही हुई मारवाड़ी समाज को
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