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________________ ५४ :: :: शेष विद्या प्रकाश 'विद्यार्थी जीवन के ८ दोष' कामं क्रोधं तथा लोभं स्वादु श्रृंगार कौतुकम् । आलस्यमिति निद्रा च विद्यार्थी हयष्ट वर्जयेत् ॥५५॥ अर्थ-“ सा विद्या या विमुक्तये" वही सच्ची विद्या है जो आत्मीय स्वतन्त्रता प्राप्त कराने में समर्थ हो, ऐसी विद्यादेवी का जो अर्थी-याचक होता है वही विद्यार्थी है । बाधक तत्व को अपने जीवन से निकाले बिना 'सावकता' भी प्राप्त नहीं होती है । अत: विद्या की आराधना के साथ ये आठ बाधक तत्व समझने चाहिए औ त्यागने की कोशिश करनी चाहिये । १. काम-ज्ञानेन्द्रियों में और मन तथा बुद्धि में मादकता (चञ्चलता) लाने वाला साहित्य, कथा, कविता बोलना, लिखना वगैरह काम तत्त्र है । २. क्रोध-मस्तिष्क में उष्णता लाकर विद्यागुरुओं के साथ विरोध कराने वाला क्रोध है। ३. लोभ-सत्तालोभ, इज्जतलोभ, फैशनलोभ व वेषपरिधान लोभ के वशीभूत होकर आत्मीय सदगुणों का ग्रहण नहीं कराने वाला लोभ है। ४. स्वादु-खाने पीने की चीजों में प्रासक्ति लाने वाला स्वादु दुर्गुण है, जिससे भोजन के समय में अन्न देवता को नमस्कार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035257
Book TitleShesh Vidya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherMarudhar Balika Vidyapith
Publication Year1970
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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