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________________ शेष विद्या प्रकाश :: 'सुपुत्र की महिमा' एकेनापि सुवृक्षेण पुष्पितेन सुगन्धिना । वासितं तद्धनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा ॥४६॥ । अर्थ- जैसे गुणवान, नम्र, सत्यवादी और प्रामाणिक सुपुत्र के द्वारा खानदान की शोभा बढ़ जाती है। वैसे ही अपनी सुगंध से आस-पास के वातावरण को सुवासमय बनाने वाला, अपने पुष्पों से जन मन को राजी करने वाला, और अपनी लकड़ी तथा छाया से इन्सान मात्र को सुख शान्ति और शीतलता देने वाला वृक्ष भी है, अत: जङ्गल के पेड़ों का रक्षण करना तथा वर्धन करना मानव मात्र के लिए तो हित में है ही परन्तु समूचे राष्ट्र का हित भी निहित है। लोभ के वशीभूत होकर जङ्गल काटना, कटवाना और कोलसे पड़वाकर व्यापार में लाखों रुपये जोड़कर श्रीमंत बनने वालों की श्रीमंताई जिसके उपयोग में आवेगी अर्थात् उसका धन उसकी रोटी जिसके पेट में जायगी, उसका जीवन भी कोलसे सा काला ही बनेगा ।।४६।। बहुत सी जातियों से या बहुत से धर्मों से या बड़े-विद्वानों से, या धर्माचार्यों से संसार का भला नहीं हो सकता है, क्योंकि इस संसार को एक ही चीज की आवश्यकता है। वह है सब के साथ 'प्रेम' का बरताव । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035257
Book TitleShesh Vidya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherMarudhar Balika Vidyapith
Publication Year1970
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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