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________________ शेष विद्या प्रकाश :: :: ४३ 'शूर, पंडित, वक्ता दाता की दुर्लभता' शतेषु जायते शूरः सहस्रषु च पण्डितः । वक्ता दशसहस्रषु दाता भवति वा न वा ॥४३॥ अर्थ-पंडित महापुरुषों का कथन है कि सौ प्रादमियों में एक शूरवीर होता है, हजारों में एक ही पण्डित होता है. लाखों में एक ही वक्ता पुरुष हो सकता है परन्तु दातार आदमी का मिलना मुश्किल है ॥४३॥ न रणे विजयाच्छूरोऽध्ययनान्न च पण्डितः । न वक्ता वाक्पटुत्वेन न दाता चार्थदानतः ॥४४॥ अर्थ-ऊपर के श्लोक में जो कथन है, उस विषय में सत्य द्रष्टाओं का यह कहना है कि रण मैदान में विजय प्राप्त कर लेने मात्र से उसको शूरवीर नहीं कह सकते हैं। शास्त्रों का अध्ययन अध्यापन करने मात्र से पंडित नहीं बन सकता है। धारावाही प्रवचन करने मात्र से उसको वक्ता कहना ठीक नहीं है। उसी प्रकार कुछ भी विचार किए बिना कीति के लोभ में आकर अर्थदान करने मात्र से उसको दानेश्वरी (दातार) कहना भी अच्छा नहीं है ॥४४।। इन्सान ! ओ इन्सान ! अपने दिल में दूसरों की तस्वीरों को रखने की अपेक्षा अपनी मां की तस्वीर को स्थान दे । जिस मां में तीन गुण हैं। पुत्र के ऊपर दया करने का, पुत्र को रोटी देने का और पुत्र के अपराधों को माफ करने का गुण भरा पड़ा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035257
Book TitleShesh Vidya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherMarudhar Balika Vidyapith
Publication Year1970
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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