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________________ शेष विद्या प्रकाश :: :: २७ १. दोनों हाथों से इसने कभी दान दिया नहीं है। २. शास्त्रों की उत्तम चर्चा इसके कान में पड़ी नहीं है । ३. प्रांखों में अमृत बसाकर इसने अपने महा-उपकारी माता-पिता तथा गुरुजनों को देखा नहीं है। ४. उत्तम स्थानों में जहां दूसरों की सेवा करने का अवसर मिले, अथवा तीर्थधामों में इसके पैर पड़े नहीं है। ५. मित्र द्रोह, विश्वासु द्रोह, कूट तौल, कूट माप के द्वारा अथवा वेश्या, मच्छीमार, कसाई और शिकारी के साथ व्यापार करके कमाया हुआ धन इसके पेट में पड़ा है । ६. घमण्ड के मारे इसका मस्तक हमेशा ऊंचा रहा है, अर्थात् बड़ों के, गुरुजनों के और उपकारी माता-पिता के चरणों में इसका मस्तक कभी भी झुका नहीं है । अतः हे सियाल ! इस नीच इन्सान के शव को छोड़ दे । छोड़ दे । इस पर सियाल ने तथा सियाल कुटुम्ब ने भूखा मरना स्वीकार किया और पापी तथा समाज-द्रोही के शव को छोड़ के चल दिया ॥२६॥ पूर के घमण्ड में किनारे के पेड़ों को गिरा देने वाली नदी ! याद रखना कि आज का आया हुआ पूर तो कल चला जायगा, परन्तु दूसरों को गिराने का पाप तो तेरे माथे पर रहेगा। -राजा भोज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035257
Book TitleShesh Vidya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherMarudhar Balika Vidyapith
Publication Year1970
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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