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________________ २०:: :: शेष विद्या प्रकाश (३) प्राण त्याग कर देना अच्छा है परन्तु दूसरे व्यक्ति के साथ पिशुनता का व्यवहार करना बुरा है, कलह-कंकास, चुगली, दूसरे के चरित्र में कलंक लगाना प्रभृति पिशुनता के ही समानार्थ है, इन सब का त्याग करना ही श्रेष्ठ मार्ग है। (४) भीख मांग कर खाना श्रेष्ठ है, परन्तु विश्वासघात, स्वामी. द्रोह, मित्रद्रोह, कूटतोल, कूटमाप और छलप्रपंच के द्वारा दूसरों के धन को अपने घर में लाना या पेट में डालना अत्यन्त खतरनाक है। महात्मा गांधी भी कह गये हैं कि "अन्यायोपाजित धन और कच्चा पारा दोनों एक ही समान है" ||२२॥ 'अत्यन्त दुःखदायक सात व्यसन' घतं च मांसं सुरा च वेश्या पापचिचौर्ये परदार सेवा । एतानि सप्त व्यसनानि लोके घोरातिघोरं नरकं व्रजन्ति ॥२३॥ - अर्थ-संस्कृत साहित्य में व्यसन शब्द का अर्थ 'दुःख' होता है। जिनके सेवन से ऐकान्तिक दुःख और दुःख परम्परा पाती है, ऐसे सात व्यसन अवश्यमेव त्याज्य हैं। सात व्यसन इस प्रकार हैं। जूना खेलना, मांस खाना, शराब का सेवन करना, वेश्यागामी बनना, शिकार खेलना, परधन की चोरी करना, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035257
Book TitleShesh Vidya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherMarudhar Balika Vidyapith
Publication Year1970
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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