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________________ :: शेष विद्या प्रकाश खाते पीते उठते बैठते और व्यापार व्यवहार करते समय जो भी मानव 'ॐ ह्रीं नम:' का जाप अपने मन में चालू रखेगा, उसकी मनोकामना पूरी होगी ॥ १ ॥ ' देव नमस्कार' २ :: भवबीजाङ्कुरजनना रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै ||२|| अर्थ- संसार की मायाजाल बढ़ाने में आत्मा के जिन आन्तरिक शत्रुम्रों ने बीज के प्रकुरों जैसा काम किया है, उन रागद्वेष, काम, क्रोध, शाप आदि अन्तर्गत शत्रुधों का जिन महापुरुषों ने समूल नाश किया है, वे चाहे ब्रह्मा हो, विष्णु हो, हर हो या जिनदेव हो मेरा भावपूर्वक नमस्कार हो अर्थात् जिन आत्मा के रागद्वेष जन्य दोष तपश्चर्या रूपी ग्रग्नि में समूल नाश हो गये हों उन भिन्न भिन्न नामधारी देवाधिदेव को मैं नमस्कार करता हूँ ||२|| उत्तेजना और क्रोध जनमानस को भ्रान्त कर देता है और उनमें घृणा भर देता है । - जवाहरलाल नेहरु इस तरह का धर्म, जिसकी बुनियाद में बुद्धि नहीं, विवेक नहीं, कैसा तारक होगा ? श्रद्धा भी हो तो वह विवेक युक्त होनी चाहिए। - विनोबा भावे कार्य का आनन्द ही कार्य का सबसे बड़ा पुरस्कार है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat - सरदार पटेल www.umaragyanbhandar.com
SR No.035257
Book TitleShesh Vidya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherMarudhar Balika Vidyapith
Publication Year1970
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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