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________________ शेष विद्या प्रकाश :: :: १०६ 'ब्रह्मचर्य के पालन में दोषों का नाश होता है' आलस्यमङ्गजाऽञ्च, शौथिल्यं सत्त्वहीनता । ब्रह्मचर्य न विद्यन्ते दोषा ! प्रमादसूचकाः ।।१२२।। अर्थ-अपनी मर्यादा में रहता हुअा पुरुष जो ब्रह्मचर्य धर्म की आराधना करता है तो प्रालस्य, शरीर जड़ता, शौथिल्य तथा सत्त्वहानि वगैरह दोषों से उसकी मुक्ति होती है ।।१२२।। 'विचक्षण कौन है ?' हयस्तनं कम मा पश्य श्वस्तनं मा विचारय । वर्तमानेन कालेन वर्तन्ते हि विचक्षणाः ।।१२३॥ अर्थ-हे भैया ! भूतकाल तो चला गया है अब हजारों प्रयत्न करने पर भी गया हुअा काल वापिस पा नहीं सकता। अतः उसी के गुण गान करने से या रोते रहने से क्या फायदा है ? भविष्य काल अभी दूर है जब वह मस्तक पर आया ही नहीं है तो गधे के सींग के समान उस भावी काल के बाजे बजाना भी छोड़ दे। तू यदि बुद्धिमान है, विवेकी है तो जिस महा दयालु परमात्मा की कृपा से वर्तमान काल तेरे हाथ में पाया है उसो को सुधार ले भैया, ऐसी भूलें मत करना, निरर्थक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035257
Book TitleShesh Vidya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherMarudhar Balika Vidyapith
Publication Year1970
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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