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________________ शेष विद्या प्रकाश :: 'कैंची जैसा काम हानिप्रद है' कर्तरीसदृशंकर्म मा कुरु परछेहकम् । कुरुत्वं सूचिवत् कार्यः भद्रं वाञ्छसि हे सखे ।।११५॥ अर्थ-अत्यन्त दुर्लभ मनुष्य अवतार को प्राप्त करके यदि आप अपना भला चाहते हो तो, जिस कार्य से दूसरों के व्यापार व्यवहार में नुकसान हो जाय, या उनके बाल बच्चों को भूखे मरने की नौबत आ जावे, ऐसा कैंचो (Scissors) जैसा कार्य मत करना। और सुई ( Needle) के जैसा कार्य करना, जिससे सबों का भला हो सके । समझना सरल है कि कैंची अपना काम करके गादो के नीचे दबती है और सुई अपना काम करके दरजी के मस्तक पर चढ़ती है । इन्सान भी कैची के सदृश कार्य करेगा तो सामाजिक जीवन में वह निन्दनीय बनेगा और सुई के तुल्य दूसरों को सांधने वाला सबका पूज्य और आदरणीय बनेगा ॥११५।। सुपारी कहती मैं भोली भाली, खेलु लोहे के संग। मेरे तन के टुकड़े होवे, जब खुले मेरा रंग ॥ लाल पीलो ने बादली, मूल रंग कहेवाय । बाकी ना बीजा बधां, मेलवणी थी थाय ।। भणतर रही गई बांझडी, गणतरी भूल्या गमार । परतिरीया फंदे पड़ी, रखड्या भाई संसार ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035257
Book TitleShesh Vidya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherMarudhar Balika Vidyapith
Publication Year1970
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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