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________________ ६४ :: शिरोहीना नरा यत्र, द्विभुजा करवर्जितः । जीवंतं नरं भक्षंतं तस्याऽहं कुल बालिका ॥ १०० ॥ :: शेष विद्या प्रकाश अर्थ- मैं उस दरजी के कुल की लड़की हूँ, जिनका बनाया हुआ कमीज (कोट) मस्तक रहित है, तो भी प्रादमी सा दिखता है, हाथ नहीं है फिर भी दो भुजा है, श्रौर जीवित आदमी पहिनता है ||१००|| इन चारों श्लोकों से मालूम पड़ता है कि, भारत देश में बहुत लम्बे काल तक संस्कृत भाषा का प्रचार रहा होगा, जब कि आज स्वतंत्रता मिलने पर भी तथा राज भाषा की प्रत्यन्त श्रावश्यकता होने पर भी एक राजभाषा कायम नहीं हो रही है इसके अलावा और क्या अफसोस हो सकता है ।। १००il बाजरे की रोटी, और मोठन का साग | देखी राजा मानसिह, तेरी मारवाड़ || इंद पिंद पिंद्र सिंध, गीर गधे की सवारी करे, चाल चले पीर की । अमीर की ॥ बनिया फूल गुलाब का, धूप लगे न करमाय । पत्थर मारे न मरे, पण मंदी से मर जाय || Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat मन बन्दर माने नहीं, जब लग दगा न खाय । जैसे नारी विधवा, गर्भ रहे पछताय || www.umaragyanbhandar.com
SR No.035257
Book TitleShesh Vidya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherMarudhar Balika Vidyapith
Publication Year1970
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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