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शेष विद्या प्रकाश ::
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बनता है जिस पाहार से प्राणीमात्र जीवित रहता है । जब वह 'वि' उपसर्ग के साथ कर दिया जाय तो विहार शब्द मुनिराजों के लिये प्रिय बन जाता है, क्योंकि स्थानान्तर, ग्रामान्तर देशान्तर करना ही मुनियों का श्रेष्ठ मार्ग है । और उसी हार शब्द को जब 'सं' उपसर्ग से मिला दें तब संहार शब्द बन जाता है। जब जब इन्सानों में, जातियों में, सम्प्रदायों में धर्म के नाम पर या सुधारों के नाम पर संघर्ष बढ़ता है, वैर झैर की होली भड़कतो है, और इन्सान इन्सान से एक जाति दूसरी जाति से और एक सम्प्रदाय दूसरे संप्रदाय से मर्यादातीत वैर कर लेता है और Man eata_man का रोग खूब आगे बढ़ जाता है, तब कुदरत को 'संहारकारक' शस्त्र हाथ में उठाना पड़ता है। छोटा बच्चा भी जानता है कि दो कुते या दो भैंसे आपस में कितने ही लड़ें तथापि संसार को कुछ भी नुकसान नहीं होता है, परन्तु एक इन्सान दूसरे से लड़े, या श्रीमंत, श्रीमंत से लड़े, या सत्ता धारी, सत्ताधारी से लड़े, तो निश्चित समझना चाहिये कि देश के जाति के या कुटुम्ब के बर्बाद होने के लक्षण हैं ।।१०।।
पागड़ी गई आगरी, फेटा गया फाट । तीन आना री टोपी लाई, महिना चाली पाठ ।। परनारी प्रसन्न भई, देन नहीं कछु और । मुत्र स्थान प्रागे करे, यही है नरक का ठौर ।।
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