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molecules) की विविधता सबसे अधिक और संख्यातीत है। किसी वस्तु की आन्तरिक बनावट के ऊपर ही उसका रूप, गुण और क्रिया-प्रक्रिया इत्यादि निर्भर करते हैं। मनुष्य शरीर के लिए भी यह बात उतनी ही दृढ़ता एवं सत्यता के साथ लागू है जितनी कि किसी दूसरी बेजान वस्तु (chemical substance) के साथ।
विजली वाले यन्त्र अपनी बनावट की विभिन्नता, छोटाई-बड़ाई, रूप, आकार, अंदरूनी अंग प्रत्यंग का गठन एवं हर एक छोटे-मोटे विभेद के अनुसार ही भिन्न-भिन्न कार्य संपादन करते हैं। विद्युत शक्ति या विजली का प्रवाह सब में एक ही तरह का होता है। केवल बनावट की विभिन्नता के कारण ही कार्य, असर एवं व्यवहार अलग-अलग विभिन्नता लिए हुए होते हैं। स्टीम या भाप से चलने वाले यन्त्रों और मशीनों के साथ भी यही बात है। बिजली या स्टीम (भाप) स्वयं कुछ नहीं करते न उनके यन्त्र ही स्वयं अकेले कुछ करते हैं--पर यन्त्र और शक्ति दोनों के संयोग से ही सब कुछ होने लगता है। आत्मा और शरीर के साथ भी यही बात है। यदि किसी पानी से भरे घड़े में एक छोटा छेद किया जाय तो पानी पतली धार में एक छेद से ही निकलेगा। छेद यदि बड़ा कर दिया जाय तो धार मोटी हो जायगी और यदि कई छेद कर दिए जायं तो उनके अनुसार ही मोटी पतली पानी की धाराएं उतनी ही संख्या में निकलेंगी। किसी छेद में ऐसी "टोंटी" लगादें जिससे टेढ़ी या दूर तक जाने वाली या किसी भी दूसरी तरह की धारा जैसी चाहें निकलती हो तो यह उस टोंटी की बनाक्ट और घड़े में युक्त करने के तरीके के ऊपर निर्भर करती है, इत्यादि। यदि एक मनुष्य को किसी जानवर की खाल में इस तरह बन्द कर दिया जाय कि उसके हाथ पैर खाल के हाथ पैर की जगहों में हो तो उस मनुष्य की चालअपनी न रह कर उस जानवर की ही समानता करेगी, जिसकी खाल होगी। एक बैल का शरीर ऐसा है कि सजीव होने पर वह एक खास तरह के ही कर्म कर सकता है, दूसरे तरह के नहीं। यही बात दूसरे
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