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________________ वर्ग-प्रतियोगियों की कुछ और चिट्ठियाँ सुन्दर बाग, लखनऊ इससे 'सरस्वती' के अनेक अाकर्षणों में एक की ९ दिसम्बर १९३६ और वृद्धि हो गई, इसमें सन्देह नहीं । बधाई ! भवदीय, प्रिय महोदय, -- तारादत्त उप्रेती ___आपकी वर्ग-पूर्तियों में यह मेरा पहला प्रयत्न था । ता. ७-१२-३६ व्यत्यस्त-रेखा-पहेली में, जैसी कि सरस्वती में निकल रही - कटरा, इलाहाबाद है, पुरस्कार पाना भाग्य पर नहीं, बुद्धि पर निर्भर है । जनाबमन । वर्ग नम्बर ४ में संकेत था—'कोई कोई ऐसी तंग होती श्रादाब अर्ज़ । दिसम्बर सन् ३६ की 'सरस्वती' देखकर है कि हवा का गुज़र भी कठिनता से हो'। इसके उत्तर मालूम हुआ कि वर्ग नं०४ दो शब्द थे—ाली, नली। लेकिन 'हो' शब्द से में पहिला इनाम पानेवालों मुझे पूर्ण विश्वास हो गया कि ठीक उत्तर 'नली' में मेरा भी नाम है। मुझे है ।' कई गलियों में, सकरेपन के कारण, हवा कम तथा यह देखकर निहायत खुशी अशुद्ध होती है, पर वहाँ हवा अवश्य होती है। नली में हुई कि मैं पहली कोशिश हवा का न होना कोई आश्चर्यजनक नहीं है। वह अगर में नहीं तो दूसरी में ही सही बहुत तंग है तो और वस्तु क्या हवा भी मुश्किल से पहुँच आख़िर कामयाब तो हुआ। सकती है । अगर अन्त में होता है” शब्द होते तो गली मेरे ख़याल से आप कम भी इसका ठीक उत्तर होती। पढ़े-लिखे हों, पर यदि . इसी तरह 'वर्षा भी प्रायः इसका कारण होती है' का इशारों पर ख्याल दौड़ायें ठीक उत्तर 'अकाज' था न कि 'अकाल', क्योंकि अकाल तो यह काम कोई मश्किल नहीं है। मुझे तो अब इतना सदा वर्षा के कारण होता है। शौक हो गया है कि मैं अगर किसी दिन इस पर नहीं मैं आशा न एक बार आपके जीता ही नहीं। वर्ग की अवश्य शुद्ध पूर्ति भेजूंगा और ३००) का अकेला मि० गामा ही पुरस्कार-विजेता हाऊँगा। ___ भवदीय प्रिय महोदय, प्रेमप्रकाश अग्रवाल अक्टूबर की 'सरस्वती' में प्रकाशित व्यत्यस्त-रेखा-शब्द( २ ) पहेली का पुरस्कार ठीक समय पर हम सब लोगों को __ माधुरी आफ़िस, लखनऊ मिल गया, इसके लिए आपको धन्यवाद। १०-१२-१९३६ अवश्य ही हिन्दी में इस प्रकार की पहेलियों का प्रिय महोदय, अभाव ही-सा था और इसकी आवश्यकता भी थी, क्योंकि ___ आपका पुरस्कार-प्राप्ति की सूचना का कृपापत्र तथा अँगरेज़ी पत्रों में इनकी प्रचुरता रहती ही है। आपने पुरस्कार से रुपये दोनों यथासमय मिल गये । तदर्थ धन्य- हिन्दी में इस कमी की पूर्ति करके हिन्दी पत्र-पत्रिकात्रों वाद। आपकी 'पहेली' वास्तव में पहेली के उद्देश्य को को निदर्शन कराया है। आपकी सार्थक करती है। मनोविनोद का यह सर्वोत्तम साधन है, कृष्णाकुमारी क्योंकि इससे केवल विनोद ही नहीं होता, साथ-साथ बुद्धि रामचन्द्र त्रिपाठी मिश्र-भवन, का विकास और सफल होने पर आर्थिक लाभ भी हो पी० रोड गान्धीनगर, कानपुर जाता है। ८४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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