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वारस्वनी
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सम्पादक देवीदत्त शुक्ल श्रीनाथसिंह
जनवरी १९३७ ।
भाग ३८, खंड १ संख्या १, पूर्ण संख्या ४४५
पौष १९६३
सम्राट एडवर्ड अष्टम के प्रति
लेखक, श्रीयुत सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
वीक्षण अराल :
बज रहे जहाँ जीवन का स्वर भर छन्द, ताल
मौन में मन्द्र, ये दीपक जिसके सूर्य-चन्द्र, बंध रहा जहाँ दिग्देशकाल, ____ सम्राट् ! उसी स्पर्श से खिली प्रणय के प्रियङ्गु की डाल डाल !
विशति शताब्दि, धन के, मान के बाँध को जर्जर कर महाब्धि ज्ञान का, बहा जो भर गर्जन
साहित्यिक स्वर“जो करे गन्ध-मधु का वर्जन
वह नहीं भ्रमर;
मानव मानव से नहीं भिन्न, निश्चय, हो श्वेत, कृष्ण अथवा,
वह नहीं क्लिन्न;
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