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________________ ६० सरस्वती [भाग ३८ का शीर्षक था दिल के फफोले और लेखक थे श्री मैंने एक और रँगी-चुंगी पत्रिका उठाई। यह 'चाँद' अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'। शीर्षक से ही मैंने था। आवरण-पृष्ठ का मानचित्र आकाश को भी दीप समझ लिया था कि कवि को किसी से कुछ शिकायत है। दिखा रहा था। पर अन्दर कमारी सरला वर्मा ने एक कविता में हरिऔध जी ने कवि के दुखी मन को इस चित्र बनाकर पाठकों को कब की याद दिलाई थी और प्रकार सान्त्वना देने की चेष्टा की है-- श्री रामकुमार वर्मा ने गर्व के साथ लिखा थामतलबी दुनिया होती है, कराहें क्यों भर-भर आहे। यह टूटी-सी कब्र और टूटी-सी अभिलाषा मेरी । कब और वह भी टूटी। निराशा की हद हो गई ! मैंने एक और पत्रिका उठाई। उसके प्रथम पृष्ट पर यह माना कि भारत पराधीन है। बेकारी, गरीबी और श्री मैथिलीशरण गुप्त की असफल शीर्षक कविता छपी है। महामारी का चारों ओर दौरदौरा है। पर देश की अात्मा प्रथम पक्ति इस प्रकार है ___ इन सबके भीतर से वैसी ही उठ रही है जैसे वर्षा में - रहूँ अाज असफल मैं। मिट्टी के भीतर से वनस्पतियों के नवांकुर उठते हैं । उस __इसमें सन्देह नहीं कि गुप्त जी ने सफलता का भी इस जीवन को हमारे कवि लोग क्यों नहीं देखते ? यह एक कविता में ब्राह्रान किया है। पर असफलता की याद उन्हें प्रश्न है जिस पर प्रत्येक हिन्दी-प्रेमी का विचार करने की एक मिनट भी नहीं भूलती। वे कहते हैं श्रावश्यकता है। मरण ताकता है तू मुझको पर मैं क्यों देखू तुझको ? 'अखबार-कीट व्यङ्गय-बिहारी चित्रकार, श्रीयुत केदार शमा जाम डिगत पानि डिगुलात गिरि, लखि सब ब्रज, बेहाल । कंप किसोरी दरस ते, खरे लजाने लाल ।। ANDA NAUR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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