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सरस्वती
[भाग ३८
हिन्दी बोलते हैं, क्या आप उसी ऊट-पटाँग हिन्दी में . श्री हरिभाऊ जी कहते हैं- "यदि हमें सचमुच उनकी पुस्तकें लिखेंगे और उसका नाम 'राष्ट्र-भाषा यानी ही हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के योग्य बनाना है तो उसमें हिन्दी-हिन्दस्तानी रख कर सारे राष्ट्र को उसका अनुकरण हिन्दुस्तान में प्रचलित तमाम धर्मों और प्रान्तों की करने का उपदेश देंगे? मेरा विचार है, आप कभी भी भाषाओं के सुप्रचलित शब्दों का समावेश अवश्य करना वैसा दुस्साहस नहीं कर सकते । अाज तक किसी जर्मन होगा।" और कि "३५ करोड़ हिन्दुस्तानियों की भाषा देशभक्त ने अपनी 'श्रात्म-कथा' अँगरेज़ी में, किसी अँगरेज़ वही हो सकती है जिसको सब लोग आसानी से समझ सके ने फ्रेंच' में या किसी इटालियन ने 'फ़ारसी' में नहीं लिखी और बोल सकें।" अब देखना यह है कि 'मेरी कहानी' है। श्री जवाहरलाल जी ने खुद हिन्दी में न लिख कर में तेलगू, तामिल, मलयालम, कनाड़ी, पंजाबी, सिंधी, उसे विदेशी भाषा में लिखा है। इससे स्पष्ट है कि वे अपनी मुलतानी, और झंगी अादि भारतीय भाषाओं के कितने हिन्दी को साहित्यिक या अनुकरणीय नहीं समझते। पंडित शब्द हैं । मैं समझता हूँ, शायद ही कोई निकले। फिर महावीरप्रसाद जी द्विवेदी और बाब श्यामसुन्दरदास जी क्या "ख्वाहिशात, जज़बात और वाकयात" को सब कोई श्रादि सज्जन हिन्दी के प्रामाणिक लेखक माने जाते समझता है ? मैंने तो फ़ौजी गोरों को देखा है । साधारण हैं और साहित्यिक हिन्दी के लिए उनकी ही शैली का पढ़े-लिखे होने पर भी वे अँगरेज़ी की साहित्यिक पुस्तकों अनुकरण करना परम आवश्यक है। कल्पना कीजिए कि के बहुत-से शब्दों के अर्थ नहीं समझते । उनको उनके यदि श्री जवाहरलाल जी अपनी मूल अँगरेज़ी पुस्तक अर्थ समझाने पड़ते हैं। तो क्या घटना, भावना, लालसा आपकी हिन्दी जैसी 'विकास-शील' अँगरेज़ी में लिखते आदि शब्दों को यदि मुसलमान न समझे या समझने और उसमें चीनी, जापानी और हब्शी भाषाओं के बहुत- का यत्न करने में अपना अपमान समझे तो उनको प्रसन्न से शब्द ढूंस देते क्योंकि इंग्लैंड में बहुत-से हब्शी भी करने के लिए साहित्यिक हिन्दी का ही मूलोच्छेदनं कर बस गये हैं, तो उसकी कैसी मिट्टी ख़राब होती । महात्मा दिया जाय ? यह सबको प्रसन्न करने या मुसलमानों के गांधी जी के अँगरेज़ी लेखों और जवाहरलाल जी की पदलेहन की कुनीति देश को ले डबेगी। यह किसी बात 'मेरी कहानी' को अँगरेज़ों में कद्र होने का एक बड़ा को सत्य और उचित समझते हए भी उस पर कारण यह है कि वह परिमार्जित अँगरेज़ी में लिखी गई है। कटिबद्ध होकर डट जाने की शक्ति देशवासियों शुद्ध अँगरेज़ी के रोब से दब कर ही लोग उनके सामने में न छोड़ेगी। इस दासता-सूचक प्रवृत्ति को जितना सिर झुका देते हैं।
शीघ्र रोक दिया जाय उतना ही राष्ट्र का भला है।
सुबोध अदापाल लेखक, श्रीयुत द्विजेन्द्रनाथ मिश्र 'निर्गुण'
बालापन क्यों विस्मृत होता ? बादल ऊपर उठते, डरते, रोते, उनके आँसू बहते; आज हमारे नयनों से मतवालापन क्यों निसृत होता? इन्द्रधनुष को पाने उससे तीर चलाने हम उठ पड़ते; बालापन क्यों विस्मृत होता? पर अब भोली प्रकृति नटी से विज्ञानी मन विकृत होता
बालापन क्यों विस्मृत होता ? केवल दो साथी को लेकर एक नया संसार बसाता; माँ के अतुलित स्नेह-कणों को पाकर उसको प्यार किया था मिट्टी के लघु महलों का निर्माण ताज का शीश झुकाता; भाई बहनों की गोदी में चढ़कर उन्हें दुलार दिया था; पर क्यों अब मेरा गृह बढ़कर पूरे जग में विस्तृत होता? अब जग भरके सुख-दुख मेंपड़पूर्ण-स्नेह क्यों अपहृत होता बालापन क्यों विस्मृत होता?
बालापन क्यों विस्मृत होता ?
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