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________________ ५३४ [ उदयपुर - "पेग्स फीडिङ्ग (सूरी को खाना देना) नामक स्थान से शहर का दृश्य । ] हमारी गाड़ी कितने राज्यों की सीमाओं को पार करती हुई धक धक करती जा रही थी। राजघृताने में कितने ही ऐसे छोटे-छोटे राज्य हैं जिनका अधिकांश मरुभूमि ही है । अतः वहाँ के राजा लोग बहुत अमीरी ढाटवाट या शौकीनी रहन-सहन नहीं रख सकते। साधारण जनसमुदाय के विषय में तो कहना ही क्या है। वे तो हिन्दुस्तान सरस्वती सारी प्रजा को दीवाली के अवसर पर ही भात खाने को गढ़ पहुँची। यहीं मिलता है । पकड़नी थी । में सर्वत्र ही गरीब हैं। पहाड़ों को लाँघती हुई हमारी गाड़ी इस मरुप्राय देश में जा रही थी। पहाड़ और गाड़ी से मानो बाज़ी लगी हुई थी, किन्तु इसमें पहाड़ी की ही जीत जान पड़ती थी। हमारी अधिक गई थीं । हिमालय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३८ से परिचित मेरे नेत्र उस दीन प्रकृति को देखकर विरक्त से हो रहे थे। उस समय मैं सोचता था. क्या उदयपुर भी ऐसा ही होगा। अजमेर के बाद जितने पहाड़ नज़र आये. प्रायः उन सर्वो पर मैंने किलेबन्दी देखी। किलों में मज़बूत पत्थर के मकान बने हुए थे । देखने में बहुत पुराने जान पड़ते थे । राजस्थान के बहादुर लड़ाके यहीं रात्रि में आश्रय लेते थे । उन दिनों किसी मुग़ल के लिए उन पहाड़ों का सामना करना आसान न था । मेरी ध्यानमुद्रा टूट गई जब मेरी गाड़ी चित्तौरसे बदलकर उदयपुर-स्टेट-रेलवे गाड़ी पहले से ही खड़ी थी। सवार होने ही चन्द्रदेव के सहित पश्चिम का नीला नभ साथ ही चल रहा था। हम जल-पान करते हुए उस दिगन्त व्याप्त पर्वतप्राय मरुभूमि पर अपनी राय भी जाहिर करते जाते थे । हम लोग चित्तौरगढ़ से चार घंटे में उदयपुर पहुँच [उदयपुर—“घनघोर वाट” जिसका फाटक पूर्वीय कला का जीता जागता नमूना है । ] www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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