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प्रान्तीय स्वराज्य की स्थापना
प्रोफेसर कीथ का मत गत पहली अप्रेल से सन् १९३५ के गवर्नमेंट प्रोफेसर बेरीडेल कीथ ब्रिटेन के सबसे बड़े आफ इंडिया एक्ट के अनुसार भारतवर्ष में प्रान्तीय विधान-वेत्ता माने जाते हैं। उनका कहना है कि स्वराज्य की स्थापना हो गई है। परन्तु यह दुःख की उत्तरदायी शासन में गवर्नरों को विशेषाधिकार बात है कि इसका आरम्भ जिस उत्साह और होना ही न चाहिए । 'स्काट्समैन' में उन्होंने एक पत्र विश्वास के साथ होना चाहिए था, वह निगाहों से प्रकाशित कराया है। उसका आशय यह हैओझल-सा हो रहा है। जिन प्रान्तों की व्यवस्थापिका महात्मा गांधी ने और उनकी प्रेरणा से कांग्रेस ने सभाओं में कांग्रेस का बहुमत है, वहाँ निश्चय ही उत्तरदायी शासन के सिद्धान्तों का अध्ययन किया है और कांग्रेसी मंत्रियों की नियुक्ति होनी चाहए थी। यह समझ लिया है-जिसको सर सेमुएल होर कभी समझ कांग्रेस मंत्रि-पद ग्रहण करने के लिए तैयार थी और नहीं पाये-कि गवर्नरों को विशेषाधिकार देना उत्तरदायी प्रारम्भ में सरकार का रुख भी ऐसा था कि वह शासन के बिलकुल असंगत है। भारत-शासन-विधान में कांग्रेस के मार्ग में बाधक नहीं जान पड़ती थी। परन्तु प्रारम्भ से ही यह त्रुटि है कि उसने गवर्नरों को ख़ास कांग्रेस ने जब यह आश्वासन माँगा कि यदि मन्त्री ज़िम्मेदारी सौंपकर ज़िम्मेदारी नकली बना दी। विधान के अन्दर कार्य करेंगे तो गवर्नर उनके लार्ड असकिन (मदरास के गवर्नर) और लार्ड ब्राबोर्न कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे तब गवर्नरों ने उसे (बम्बई के गवर्नर) का यह कहना बिलकुल निरर्थक है कि वे ऐसा आश्वासन देने से इनकार कर दिया। फलत: मन्त्रियों को सब तरह से सहायता, सहानुभूति और सहयोग कांग्रेस ने मन्त्रिपद नहीं ग्रहण किया। गवर्नरों का देंगे, क्योंकि उस विधान ने गवर्नरों पर ऐसा अधिकार कहना है कि नियमानुसार वे ऐसा आश्वासन नहीं और कर्तव्य डाल दिया है जो मन्त्रियों की ज़िम्मेदारी को दे सकते थे और कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि प्रहसन बना देता है । यह खेद की बात है कि गवर्नरों को वे दे सकते थे। इस प्रकार एक भीषण वैधानिक अधिक निश्चित प्रतिज्ञा करने का अधिकार नहीं दिया गया। समस्या उत्पन्न हो गई है और यदि समझौते की कोई अल्पमतवालों का मन्त्रिमण्डल बनाना ज़िम्मेदार सुरत न निकली तो इस विधान के अनसार सरकार को ही न मानना है। गवर्नर लोग सरकार का कदाचित् ही कार्य हो सके। इस सम्बन्ध में देश- काम अपने हाथ में जितना ही जल्द ले लें उतना ही विदेश के विद्वानों और कांग्रेस के नेताओं तथा अच्छा है। दायी शासन को विधान का भंग होना छिपाने सरकारी पक्ष के समर्थकों ने लम्बे वक्तव्य प्रकाशित के काम में न लाना चाहिए। किये हैं। 'सरस्वती' के पाठकों की जानकारी के लिए यहाँ हम कुछ महत्त्वपूर्ण वक्तव्य प्रकाशित सर तेजबहादुर सपू का मत करते हैं।
राइट आनरेबुल सर तेजबहादुर सप्रू उन व्यक्तियों में हैं जिनके पांडित्य का भारतवर्ष और ५०५
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