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________________ ( ५०० ) प्रतियोगियों की शंकायें और बधाइयाँ शुद्ध वर्गपूर्ति प्रकाशित होने पर प्रतियोगियों को की कृपा करेंगे कि आपके लिखे 'नगज', 'साकर' और अपनी भूल का पता चल जाता है। पर कुछ ऐसे 'बड़हन' किस भाषा के शब्द हैं - और कहाँ ज़्यादा भी लोग हैं जो अपनी दलील को छोड़ना नहीं चाहते बोले जाते हैं और इनका क्या अर्थ है ? और अपनी ही पूर्ति को ठीक समझते हैं। इस तरह सौ० सरस्वतीदेवी शर्मा के एक पत्र का एक आवश्यक अंश हम यहाँ उद्धृत श्रीसरस्वती महिला पुस्तकालय जेनरलगंज, मथुरा करते हैं आशा है, इस पत्र में की गई शंकाओं का भी (१) 'पामर' क्यों 'पातर' क्यों नहीं ? उत्तर वे प्रतियोगी देंगे जिन्होंने संकेतों को ठीक ठीक पिछले मास के वर्ग में नं० २५ वायें से दाहने श्रापने समझा है। -सम्पादक 'पामर' शब्द निर्दिष्ट किया है और इसका संकेत था- (३) तीन वार में प्रथम पुरस्कार जीत लिया "इसका उद्देश्य ही नीच है"। किन्तु 'पामर' का उद्देश्य आपकी वर्ग-पूर्तियों में मेरा यह तृतीय प्रयत्न था। हो नीच नहीं होता, 'पामर' तो स्वयं नीच का पर्यायवाची प्रथम प्रयत्न में मुझे सन्तोष ही मात्र करना पड़ा। द्वितीय शब्द है और यदि इसकी जगह 'पातर' शब्द जो वेश्या प्रयत्न में १) का प्रवेश शुल्क-पत्र प्रात हुअा। इससे मेरा के अर्थ का है, होता तो विशेष शुद्ध व वैज्ञानिक होता। उत्साह बढ़ा। अब इस तृतीय प्रयत्न में-वर्ग नं. ५ की और उसका उद्देश्य भी नीच होता है, यह अर्थ इसमें पूर्ति में-मुझे प्रथम पुरस्कार पाने का अवसर मिला है। फिट होता है। अाशा है, आप मेरे इस पत्र को छाप देंगे इन पहेलियों की पूर्ति में मन इतना व्यस्त हो जाता ताकि अन्य व्यक्ति भी इस पर अपनी सम्मति दें। है कि पूर्तिकार इसकी पूर्ति के समय दुनिया के अन्य ___ मिश्रीलाल शर्मा c/o डा० पृथ्वीनाथ चतुर्वेदी व्यवहार भूल-सा जाता है। . . मदनमोहन फार्मेसी, धनकुटी, कानपुर मेरे नाम से वर्ग नम्बर ५ की पूर्ति में प्रथम पुरस्कार . . नोट-वर्गनिर्माता का कहना है कि "पामर" की घोषणा सुनकर यहाँ के अनेक व्यक्ति उत्साहित हुए शब्द ही ठीक है। पर वे चाहत हैं कि इसका उत्तर हैं, फलस्वरूप उन्होंने अग्रिम वर्ग नं०६ की पूर्तियाँ कोई प्रतियोगी ही जिसने इस शब्द को अपनी पूर्ति आपके पास भेजी भी हैं। में भरा हो, दे तो अच्छा होगा, क्योंकि पत्रलेखक सुन्दरीदेवी c/o पण्डित रामचन्द्र जी महोदय भी यही चाहते हैं। उत्तर हमारे पास १५ साहित्याचार्य (गोल्ड मेडलिस्ट) मीठापुर, पटना मई तक आ जाना चाहिए। -सम्पादक (४) बधाई का एक और पत्र (२) किस भाषा के शब्द हैं ? चि. सुधीरकुमार तथा चि० सुकुमारी बाला ने जो श्रीमान् जी, आपने जो वर्ग नं०७ की शुद्ध पूर्ति अपने वर्ग नं०५ की पूर्तियों भेजी थीं उनका इनाम टीक समय मार्च सन् १९३७ के अंक में प्रकाशित की है उसमें कुछ पर मिल गया। धन्यवाद। शब्द ऐसे दिखाई देते हैं जो न तो प्रचलित हैं और न अब बहुत-से लोगों ने अापकी नकल करनी शुरू किसी कोष में हैं और न उनका कोई अर्थ समझ में श्राता की है, किन्तु मेरा विश्वास है कि वे श्राप को नहीं पहुँच है-जैसे (१) नं० १० (ऊपर से नीचे)-'नगज' ? सकते-मूल्य में कमी तथा इस पहेली के कारण 'सरस्वती' (२) नं. ३ (बायें से दाहने)-'साकर' ? (३) नं० २४ की लोकप्रियता इतनी अधिक बढ़ गई है कि देखकर (ऊपर से नीचे)-'बड़हन' ? जो अर्थ इन नम्बरों का आश्चर्य होता है । दिया है उनसे 'नगर' 'सागर' 'बड़हल'- उत्तम सुशीलकुमारी मिश्रा c/o एच० एस० पाठक, डिप्टी और सार्थक शब्द बनते हैं। तब क्या आप यह बतलाने कलक्टर, बिजनौर। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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