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________________ विक्टोरिया क्रास संख्या५] पत्र लेकर घोड़े पर सवार हुआ और बर्फ में छिपता नाले की ओर बढ़ा। नाले के पास पहुँचकर चेतसिंह ने घोड़े को एक कड़ी ऍड़ लगाई। उसी विचित्र सवार को फिर केला देखकर जर्मन - सिपाही फ़ायर करने लगे, लेकिन गोलियों की भयानक वर्षा में भी घोड़ा नाला पारकर जनरल एलिस की सेना में पहुँच गया और जर्मन फ़ायर करते ही रह गये । जनरल एलिस के साथ सब अँगरेज़ और भारतीय फ़िसर चेतसिंह का अद्भुत कार्य देख रहे थे । अपनी लाइन में आकर चेतसिंह घोड़े पर से कूद पड़ा । उसके कूदते ही बेचारा घोड़ा जिसका शरीर गोलियों से चलनी हो गया था, गिरकर परमधाम को सिधार गया । चेतसिंह के पृथ्वी पर पैर रखते ही समस्त सेना ने हर्षनाद किया । जनरल एलिस ने आगे बढ़कर चादर के साथ चेतसिंह से हाथ मिलाया । चेतसिंह ने फ़ौजी सलाम कर जनरल राबर्ट का पत्र जनरल एलिस के हाथ में रख दिया और तीन क़दम पीछे हटकर खड़ा होगया । जनरल एलिस ने पत्र खोलकर पढ़ा और कुछ सोचते हुए गम्भीर स्वर से बोले - "वेल बहादुर ! भी काम पूरा नहीं हुआ । एक बार तुमको हमारा ख़त जनरल राबर्ट के पास फिर ले जाना होगा । " " हुज़ूर, हम ले जायगा । हमको अच्छा घोड़ा मिलना चाहिए ।" कप्तान वाटसन का घोड़ा पहले से ही मौजूद था । चेतसिंह ख़त लेकर घोड़े पर सवार होगया । गरज कर घोड़े का ऍड लगाई और पूरे वेग से उसे छोड़ दिया । इस बार चेतसिंह ने पहला स्थान छोड़कर दूसरी जगह से को पार करना चाहा। बर्फ और भी घनी होगई थी; हाथ से हाथ नहीं सूझता था। बर्फ में छिपता हुआ घोड़ा इस बार भी नाला पार कर गया। लेकिन इस बार मुहिम बड़ी कठिन थी, नाले के चारों ओर जर्मनों ने कटीले तार की तीन कतारें लगा दी थीं। उक्काब की तरह उछल उछल कर चेतसिंह का घोड़ा तारों को पार करता चला जा रहा था। क्रोध में श्राकर जर्मनों ने नाले में छिपी हुई जर्मनतोपों से ताक ताक कर सवार पर गोले बरसाना शुरू कर दिया । चेतसिंह के चारों ओर भयंकर शब्द कर गोले फटने लगे । घोड़ा तारों की क़तार डाक कर आगे बढ़ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४५५ गया था कि एक गोला भयंकर शब्द करके उसके पास गिरा । चेतसिंह बड़े ज़ोर से एक ओर गिर पड़ा, उसकी रान से घोड़ा निकल गया । रान में चोट श्रा जाने से चेतसिंह बेहोश - सा होगया । चेतसिंह ने समझा कि गोले का कोई टुकड़ा उसकी जाँघ में लग गया है, लेकिन होश सँभालने पर उसने देखा कि गोले की चोट से घोड़े के टुकड़े-टुकड़े उड़ गये हैं, केवल घोड़े की पसलियाँ और काठी रान में दबी रह गई है। कमर में लटकती हुई तलवार के बल गिरने से जाँघ में धमक गई थी, इसी से वह लँगड़ाने लगा और कोई चोट शरीर में नहीं आई थी। ईश्वर को धन्यवाद देकर चेतसिंह उठ खड़ा हुआ और लँगड़ाते लँगड़ाते अँगरेज़ी लाइन में पहुँच गया । जनरल राबर्ट बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे । चेतसिंह को देखते ही प्रसन्न होकर आगे बढ़े और जनरल एलिस का पत्र लेकर पढ़ने लगे । पत्र पढ़कर उन्होंने जेब के हवाले किया और घूम कर अपने पीछे खड़े हिन्दुस्तानी सिर से कहने लगे - " वेल सूबेदार घनश्यामसिंह ! हमने इस बहादुर का नाम नोट कर लिया है । तुम्हारी कंपनी में यह हवलदार बनाया जाता है । इसको आराम चाहिए ।" यह कहकर जनरल राबर्ट चले गये और हवलदार चेतसिंह, सूबेदार घनश्याम सिंह के साथ ट्रेंच में घुसे । २५ फ़ुट गहरी और तीस फुट चौड़ी तीन या चार मील लम्बी एक नहर पहाड़ी के प्रभाग में खोद दी गई थी। इसी नहर में जनरल राबर्ट की सेना दुश्मन से युद्ध कर रही थी । इस नहर के पीछे स्थान स्थान पर दर क़तारें थीं। इन नहरी सड़कों में गाँठ भर कीचड़ भर गया था, जिसके तख़्ते डालकर पाटने का प्रयत्न किया जाता था । नहर के एक तरफ़ की दीवार पर मोर्चे बाँधकर तरह तरह की तोपें लगा दी गई थीं, और आधी सेनाआफ़िसर और सिपाही अपनी अपनी जगह पर लोहे की मूर्ति की तरह खड़े थे । श्राधी थकी सेना के विश्राम के. लिए नहर के दूसरी ओर शेरों की माँद की तरह दरवाज़े खोद कर भीतर बड़े बड़े कमरे खाद दिये गये थे, जिसमें सिपाही सोते थे और जिसमें अस्पताल भी था । गाँठ भर www.umaragyanbhandar.com 1 -
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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